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पृथ्वीराज चौहान की जीवनी , इतिहास व उनकी मृत्यु कैसे हुई – Prithviraj Chauhan biography

Prithviraj Chauhan Biography in Hindi
Prithviraj Chauhan Biography in Hindi

Prithviraj Chauhan biography in hindi : दोस्तों आज के इस लेख में हम अजमेर और दिल्ली के प्रतापी राजा पृथ्वीराज (Prithviraj Chauhan) के जीवन के बारे में जानेंगे ! तो चलिए जानते है पृथ्वीराज चौहान का इतिहास (history of Prithviraj Chauhan).

सन् 1149 में चौहान वंश में अजमेर के महाराज सोमेश्‍वर और कपूरी देवी की संतान के रुप में जन्‍मे धरती के महान और देश के आखिरी हिंदू शासक रहे Prithviraj Chauhan को ‘राय पि‍थोरा’ भी कहा जाता है. Prithviraj Chauhan अपने पिता की एकलौती संतान थे और इनका जन्‍म माता-पिता की शादी के 12 साल बाद हुआ और इसी कारणवश बचपन से ही पृथ्‍वीराज को मारने के लिए राज्‍य में कई षड्यंत्र रचे गए लेकिन हर बार वह बचते गए.

Prithviraj Chauhan Biography in Hindi

Prithviraj Chauhan Biography in Hindi


Prithviraj के जन्म के वक्त ही महाराजा को एक अनाथ बालक भी मिला था. जिसका नाम चन्दबरदाई रखा गया था. चन्दबरदाई को कविताएं लिखने का शौक था और आगे चलकर उन्‍होंने कई कविता लिखी. चन्दबरदाई और Prithviraj Chauhan बचपन से ही अच्छे मित्र और भाई समान थे.

Prithviraj Chauhan की शिक्षा

Prithviraj Chauhan ने सरस्‍वती कण्‍ठाभरण विद्यापीठ से शिक्षा ली थी लेकिन इसके साथ ही बचपन से ही उन्‍होंने युद्ध के सभी गुणों की शिक्षा भी ली और एक आगे चलकर वह एक कुशल योद्धा भी बने. पृथ्‍वीराज को संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश भाषा समेत छह भाषाओं का ज्ञान था. इतना ही पृथ्‍वीराज मीमांसा, वेदान्त, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी ज्ञान रखते थे.

Prithviraj Chauhan की सेना

Prithviraj Chauhan की सेना में घोड़ों की सेना का बहुत अधिक महत्व था. इसके साथ ही हाथी सेना और सैनिकों की भी मुख्य भूमिका रहती थी. जैसे-जैसे Prithviraj की विजय होती गई, वैसे-वैसे ही सेना में सैनिकों की वृद्धि होती गई थी. Prithviraj ने लगातार सैन्य अभियानों के चलते  अपने साम्राज्य राजस्थान के साम्भर , गुजरात और पूर्वी Punjab तक फैला दिया था.

Prithviraj Chauhan का इतिहास

Prithviraj Chauhan जब कुल 11 वर्ष के थे तब उनके पिता महाराज सोमेश्‍वर का निधन हो गया और उनके सिर से पिता का साया उठ गया था. Prithviraj ने इतनी छोटी-सी उम्र में ही अपने सारे दायित्‍व निभाए और लगातार राजाओं से युद्ध कर राज्‍य का विस्‍तार किया.
Prithviraj के नानाजी अक्रपाल और तोमरा वंश के अंगपाल तृतीय ने उन्‍हें दो राजधानी Delhi और अजमेर सौंपा दिया. जब मुइज्जुद्दीन मुहम्मद मुल्तान और उच्छ पर अधिकार करने की सोच रहा था उसी वक्‍त 14 साल की उम्र के लड़के पृथ्‍वीराज ने अजमेर की गद्दी संभाल ली थी और उन्‍होंने अपनी राजधानी दिल्ली का नव-निर्माण किया. उससे पहले तोमर नरेश ने एक गढ़ के निर्माण का शुभारंभ किया था, जिसे पृथ्वीराज ने विशाल रूप देकर पूरा किया. जब उसका नाम पिथौरागढ़  रखा गया लेकिन अब उसे दिल्ली के पुराने क़िले के नाम से जाना जाता है.

गौरी और पृथ्‍वीराज का युद्ध

Prithviraj Chauhan ने अपने वक्‍त में विदेशी आक्रमणकारी मुहम्मद शाहबुद्दीन  गौरी को कई बार पराजित किया. मुहम्‍मद शाहबुद्दीन  गौरी ने 18 बार Prithviraj पर आक्रमण किया था.17 बार वह Prithviraj से हार गया था, लकिन एक बार उसने विजय पा ली थी. साथ ही ऐसा कहा जाता है कि गौरी और पृथ्वीराज में कम से कम दो भीषण युद्ध हुए थे. जिनमें प्रथम में पृथ्वीराज विजयी और दूसरे में पराजित हुए थे. यह दोनों युद्ध थानेश्‍वर के निकटवर्ती ‘तराइन’ या ‘तरावड़ी’ के मैदान में हुए थे.

पृथ्‍वीराज पंजाब पर कब्‍जा करना चाहते थे लेकिन उस वक्‍त मुहम्मद शाहबुद्दीन  गौरी का पंजाब पर अधिकार हो चुका था. पृथ्‍वीराज जानते थे कि बिना युद्ध के पंजाब नहीं पाया जा सकता है, इसलिए वह विशाल सेना लेकर पंजाब की ओर रवाना हो गए. उसके बाद मुहम्मद शाहबुद्दीन  गौरी का पृथ्वीराज की विशाल सेना का सामना हुआ, तब राजपूत वीरों की विकट मार से मुसलमान सैनिकों के पैर उखड़ गये थे. खुद गौरी भी पृथ्वीराज के अनुज के प्रहार से बुरी तरह घायल हो गया था. यदि उस दिन उसका खिलजी सेवक उसे घोड़े पर डाल कर युद्ध भूमि से भगाकर न ले जाता, तो वहीं उसके प्राण पखेरू उड़ जाते. उस युद्ध में गौरी की भारी पराजय हुई थी और उस वक्‍त भारत छोड़ भागकर जाना पड़ा था.

पृथ्‍वीराज की मृत्‍यु वजह उनकी पत्‍नी

भारत में पृथ्वीराज की वीरता की प्रशंसा चारो दिशाओं में गूंज उठी थी. उसी वक्‍त जयचन्‍द्र की पुत्री संयोगिता ने पृथ्वीराज की वीरता का और सौन्दर्य का वर्णन सुना. जिसके बाद वह पृथ्वीराज को प्रेम करने लगी और दूसरी ओर संयोगिता के पिता जयचन्द ने संयोगिता का विवाह स्वयंवर के माध्यम से करने की घोषणा कर दी थी. जयचन्द ने अश्वमेधयज्ञ का आयोजन किया और उस यज्ञ के बाद संयोगिता का स्वयंवर होना था. जयचन्द अश्वमेधयज्ञ करने के बाद भारत पर अपने प्रभुत्व की इच्छा रखता था. जिसके विपरीत पृथ्वीराज ने जयचन्द का विरोध किया. जयचन्‍द्र पृथ्‍वीराज से नफरत करने लगा था, जिसकी वजह से जयचन्द ने पृथ्वीराज को स्वयंवर में आमंत्रित नहीं किया और उसने द्वारपाल के स्थान पर पृथ्वीराज की प्रतिमा स्थापित कर दी.
जैसे ही यह बात राजकुमारी संयोगिता को पता लगा कि, Prithviraj स्वयंवर में नहीं आने वाले तो उन्‍होंने पृथ्वीराज को बुलाने के लिये दूत भेजा. जब पृथ्‍वीराज को पता चला कि संयोगिता उनसे प्रेम करती है, यह सब जानकर Prithviraj ने कन्नौज नगर की ओर प्रस्थान किया.

स्वयंवरकाल के वक्‍त राजकुमारी संयोगिता ने वरमाला द्वारपाल के स्थान पर स्‍थापित पृथ्‍वीराज की मूर्ति को पहना दी. उसी वक्‍त घोड़े पर सवार होकर पृथ्वीराज राज महल पहुंच जाते हैं और सिंहनाद के साथ सभी राजाओं को युद्ध के लिए ललकारने लगते हैं. भरे महल में से संयोगिता का अपहरण करते हैं और इन्द्रपस्थ की ओर ले आते हैं.

इस के बाद मानों जयचन्‍द्र को Prithviraj से युद्ध करने का मौका मिल गया. जयचन्‍द्र ने गौरी के साथ मिलकर पृ‍थ्‍वीराज को मारने की योजना बनाई. साथ ही अपने साथ कई राजाओं को मिला लिया. जिसके बाद जयचन्‍द्र और Prithviraj के बीच महायुद्ध हुआ, जिसमें पृथ्‍वीराज हार गया और जयचन्‍द्र की सेना ने पृथ्‍वीराज और कवि चन्दबरदाई को बंदी बना लिया. जिसके बाद चन्दबरदाई और पृथ्‍वीराज साथ रहने लगे और पृथ्‍वीराज ने अपनी जीवनी चन्‍दबरदाई को बताई और उसे पृथ्‍वीराज रासो नामक ग्रंथ में लिखी गई.

एक दिन गौरी अपने सिंहासन पर बैठा हुआ था और Prithviraj को मैदान में लाया गया. पृथ्वीराज को उस समय पहली बार मुक्त किया गया. गौरी ने पृथ्वीराज को तीर चलाने का आदेश दिया और पृथ्वीराज ने गौरी की आवाज़ की दिशा में गौरी की तरफ तीर चलाया और गौरी उसी वक्‍त मर गया. जिसके बाद गौरी के मंत्र‍ियों ने Prithviraj को मार दिया.