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लाला लाजपत राय पर निबंध (जीवनी) – Lala Lajpat Rai Biography in hindi

लाला लाजपत राय पर निबंध (जीवनी) – Lala Lajpat Rai Biography in hindi

Lala Lajpat Rai Biography in hindi : पूरे जीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना करने वाले और अपने प्राण की बिना परवाह ना करने वाले और ऐसे ही अपने प्राण त्यागने वाले लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) को पंजाब केसरी कहा जाता है. लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) भारत (India) के एक मुख्य स्वतंत्रता सेनानी थे. आज हम इन्हीं लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) के बारे में जाएंगे और समझें की कैसे इन्होंनें अपना जीवन आजादी (Freedom) के लिए लगा दिया.

लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) के जीवन (Life) की कहानी

सन् 1865 में जब पंजाब (Punjab) पूरी तरह से अंग्रेजों के कब्जे में था. चारों ओर सिर्फ अंग्रेजों का ही बोलबाला रहता था. कोई भी अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत तक नहीं कर पाता था. जो उनके खिलाफ आवाज उठाता था. अंग्रेज सख्ती से उसका दमन कर देते थे. ऐसे वक्त में 28 फरवरी सन् 1865 को मुंशी जी की पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया था. उस बालक ने अपनी किलकारियों से चारों ओर खुशियां ही खुशियां बिखेर दीं थी.

इस नन्हें बालक के जन्म की खबर पूरे गांव में फैल गई और पूरे गांव में खुशी के लहर दौड़ गई. माता-पिता ने बड़े ही लाड़ – प्यार से अपने बालक को बड़ा किया. उस बच्चे का नाम लाजपत राय खा गया. लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) के पिता जी का नाम लाला राधाकृष्ण था और वह लुधियाना जिले के जगरांव कस्बे के निवासी अग्रवाल वैश्य थे. लेकिन उनकी माता जी सिक्ख परिवार से थीं. वह एक साधारण महिला थी. वह सिक्ख परिवार से होते हुए भी हिन्दू नारी की तरह अपने परिवार की सेवा की थी. लाला राधाकृष्ण एक अध्यापक भी थे, इसलिए लाजपत राय ( Lajpat Rai) जी की शिक्षा पांच साल की उम्र में ही शुरू हो गई थी,

लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) ने वर्ष 1880 में कलकत्ता और पंजाब (Punjab) में विश्वविद्यालय से एंट्रेंस की परीक्षा एक साल में पास की और आगे पढ़ने के लिए लाहौर आ गए. जिसके बाद वह लाहौर में सरकार काॅलेज (College) में प्रवेश लिया और फिर वर्ष 1982 में एफए की परीक्षा और मुख्यारी की परीक्षा साथ – साथ पास की. इस से आप समझ सकते हैं कि लाला लाजपत राय को पढ़ाई का कितना शोक था. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह आर्यसमाज के सम्पर्क में भी आए और उसके सदस्य बन गए.

30 अक्टूबर, 1883 को अजमेर में ऋषि दयानन्द का देहान्त हो गया था. 9 नवम्बर, 1883 को लाहौर आर्यसमाज की ओर से एक शोकसभा का आयोजन किया गया था. इस सभा के अन्त में यह निश्चित हुआ था कि स्वामी जी की स्मृति में एक ऐसे महाविद्यालय की स्थापना की जाए. जिसमें वैदिक साहित्य, संस्कृति और हिन्दी की उच्च शिक्षा (Higher Study) के साथ -साथ अंग्रेजी और पाश्चात्य ज्ञान -विज्ञान में भी छात्रों को शिक्षा दी जाए.

करीबन तीन साल बाद वर्ष 1886 में इस शिक्षण की स्थापना हुई तो आर्य समाज के अन्य नेताओं के साथ लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) का भी इसके संचालन में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा और वह कालान्तर में डीएवी कॉलेज, लाहौर के महान स्तम्भ बने थे.

लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) ने वकालत भी की

लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) ने छोटे वकील के रूप में अपने मूल निवास स्थान जगरांव में वकालत शुरू की दी थी. किन्तु यह बहुत छोटा कस्बा था. जहां लाजपत राय के काम के बढ़ने की ज्यादा सम्भावना नहीं थी. आखिर में वह रोहतक चले गए. रोहतक में वर्ष 1885 में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1886 में वह हरियाण के हिसार आ गए.

1886 से 1892 तक लाजपत राय ( Lajpat Rai) एक सफल वकील (Lawyer) के रूप में हिसार (Hisar) में ही रहे और इसी साल लाहौर आ गए. तब से लाहौर ही उनकी सार्वजनिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया था. लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) ने अपने दोस्तों और सामाजिक हित की योजनाओं के काम में अपना योगदान दिया. लाहौर आने पर वह आर्यसमाज के अतिरिक्त राजनैतिक आन्दोलन के साथ भी जुड़ गए.

पहली बार कांग्रेस (Congress) में शामिल हुए

वर्ष 1888 में लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) पहली बार कांग्रेस (Congress) के इलाहाबाद अधिवेशन में सम्मिलित हुए. जिनकी अध्यक्षता मिस्‍टर जॉर्ज यूल ने की थी. साल 1906 में वह पंडित गोपालकृष्ण गोखले के साथ कांग्रेस के एक शिष्टमण्डल के सदस्य के रूप में इंग्लैड भी गए थे फिर वह वहां से ही अमेरिका चले गए थे. उन्होंने अपने जीवनकाल में कई बार विदेश यात्राएं की और वहां रहकर पश्चिमी देशों के समक्ष भारत की राजनैतिक परिस्थिति की वास्तविकता से वहां के लोगों को परिचित कराया और उन्हें स्वाधीनता आन्दोलन की भी जानकारी दी.

वर्ष 1907 में जब पंजाब के किसानों में अपने अधिकारों को लेकर चेतना उत्पन्न हुई तो उस वक्त की मौजूदा सरकार का क्रोध लाला जी और सरदार अजीतसिंह, शहीद भगतसिंह के चाचा पर उमड़ पड़ा और इन दोनों देशभक्त नेताओं को देश से निर्वासित कर उन्हें पड़ोसी देश बर्मा के मांडले नगर में नजरबंद कर दिया. लाला जी केवल राजनैतिक नेता और कार्यकर्ता ही नहीं थे बल्कि उन्होंने जन सेवा का भी सच्चा पाठ पढ़ाया था.

लाला लाजपत राय का निधन

प्रथम विश्वयुद्ध वर्ष 1914 से 1918 के बीच लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) एक प्रतिनिधि मण्डल के सदस्य के रूप में एक बार फिर इंग्लैंड गए और देश की आजादी के लिए प्रबल जनमत जागृत किया था. इंग्रलैंड से वह जापान और अमेरिका भी गए थे. वहां स्वाधीनता- प्रेमी अमेरिकावासियों के समक्ष भारत की स्वाधीनता का पथ प्रबलता से प्रस्तुत किया था. अमेरिका (America) में इण्डियन होम रूल लीग की स्थापना की और कुछ ग्रन्थ भी लिखे.

जिसके बाद वह 20 फरवरी, 1920 को जब वह अपने देश लौटे तो अमृतसर (Amritsar) में जलियावाला बाग काण्ड हो चुका था और सारा राष्ट्र असन्तोष था और सब में बस बदले की आग जल रही थी. इसी बीच महात्मा गांधी ने सहयोग आन्दोलन आरम्भ किया तो लालाजी पूर्ण तत्परता के साथ इस संघर्ष में जुट गए. इस तरह लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) ने अपने जीवन देश के लिए कुर्बान कर दिया था.

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