essay Religion

जानिए होली का महत्व, इतिहास और खास बात – History Of Holi In Hindi

Holi Festival In Hind होली की कहानी व होली क्यों मनाई जाती है
History Of Holi In Hindi

History Of Holi In Hindi : आप सभी को हमारी तरफ से 2019 की होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं. रंगों का त्योहार है खुशियों का त्योहार है भाईचारे का त्यौहार है प्यार का त्यौहार है. इस दिन सब लोग एक दूसरे को गुलाल लगाकर और मिठाई खिलाकर गले लगाते हैं और अपने सभी गिले-शिकवे को दूर कर देते हैं. एक दूसरे को गुलाल लगाने का मतलब होता है कि जीवन से जो बेरंग पल है उन्हें दूर से आ जाए और रंग बिरंगी खुशियों का आगमन हो. हर साल होली मार्च और अप्रैल के महीने में आती है. सभी लोग होली बहुत उत्साह से बनाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली मनाई क्यों जाती है? होली के त्यौहार के पीछे एक धार्मिक कारण और एक विश्वास और श्रद्धा के प्रतीक भक्त की कहानी है. तो आइए बताते हैं हम आपको होली का महत्व और इसके पीछे की कहानी.

Holi Festival In Hind होली की कहानी व होली क्यों मनाई जाती है

History Of Holi In Hindi


होली का इतिहास

भारत का एक राजा था जो राक्षस प्रवृत्ति का था. भगवान विष्णु उसके छोटे भाई की मृत्यु के कारण थे इसी वजह से वह श्री भगवान विष्णु से बदला लेना चाहता था और इसी चाह में वह शक्तिशाली बनने के लिए सालों तक प्रार्थना करता रहा. उसकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर उसे वरदान मिला. उसने वरदान मांगा कि कोई भी स्त्री या पुरुष या जानवर उसे धरती या आकाश पाताल लोक में ना मार पाए. ईश्वरदान के मिलने के बाद हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझ ने लगा और लोगों को खुद की पूजा करने के लिए कहने लगा.

उसको लगने लगा कि अब उसे कोई भी नहीं मार पाएगा. लेकिन नियति का खेल देखिए राजा का बेटा श्री विष्णु भगवान का परम भक्त था. वह हमेशा श्री विष्णु की पूजा में लीन रहता था और अच्छे कर्म करता. प्रह्लाद के पिता उसे हमेशा भगवान विष्णु को ना मानने के लिए कहते थे लेकिन वह कभी उनकी बात नहीं सुनता था और उनकी पूजा और प्रार्थना में मग्न रहता था. जब हिरण्यकश्यप ने देखा कि प्रहलाद उनकी बात नहीं मान रहा है तब उन्होंने उसकी मृत्यु का मृत्यु का खेल रचा रचा अपनी बहन होलिका को बुलाया और उससे कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ जाए. इस कार्य के लिए होलिका को इसलिए चुना क्योंकि उसे वरदान था कि वह कभी अग्नि में नहीं जल सकती. इसी योजना के अनुसार होलीका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ गई. उस समय भी प्रह्लाद भगवान विष्णु के नाम की माला जपता रहा. नियति का खेल था और भगवान विष्णु की कृपा की होलिका की चादर ओढ़ कर प्रहलाद के ऊपर आ गई और वह बच गया और उस आग में होलिका जल कर मर गई.

होलिका की मृत्यु बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इसके बाद हिरण्यकश्यप ने दोबारा प्रहलाद को मारने की कोशिश की उस में प्रहलाद ने कहा कि मेरे विष्णु हर कण कण में है. इस बात पर हिरण्यकश्यप ने कहा कि बुलाओ अपने विष्णु को मैं भी देखना चाहता हूं उसकी शक्ति. इसके बाद भगवान श्री विष्णु ने नरसिंह भगवान का अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया. इस प्रकार होली का त्योहार होलिका की मृत्यु और हिरण्यकश्यप वध के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. इस त्यौहार को अच्छाई की बुराई पर जीत के लिए भी मनाया जाता है. इस दिन लोग रंग बिरंगे रंगो से इस त्योहार को मनाते हैं. और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रति को बनाने के लिए हर वर्ष होली का भी जलाते हैं जिसे हम होलिका दहन कहते हैं.

Live holika dahan

होली के त्यौहार में रंगों का महत्व और उनके होने का कारण:

कृष्ण की मृत्यु के बाद यह कहानी खत्म नहीं हुई यह भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री कृष्ण के समय तक चलती रही. कहां जाता है कि भगवान विष्णु देवा कृष्ण रुपी अवतार में थे तब होली रंगों के साथ मनाते थे इसी वजह से होली के त्योहारों पर रंगों की लोकप्रियता हुई. भगवान श्री कृष्ण वृंदावन और गोकुल में साथियों और गोपियों के साथ रंगों से होली मनाया करते थे और फिर पूरे गांव में शैतानियां क्या करते थे. आज भी वृंदावन में होली का त्योहार उसी तरह की मस्ती और उत्साह के साथ मनाया जाता है.

होली को बसंत का त्यौहार भी कहा जाता है होली के आने पर सर्दियों का मौसम खत्म हो जाता है और गर्मियां शुरू हो जाती हैं. भारत के बहुत से ऐसे ऐसे हैं जहां होली के त्यौहार का संबंध बसंत ऋतु में पैदा होने वाली फसल से भी माना जाता है. कहा जाता है कि किसान इस मौसम में अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली को मनाते हैं. और यही वजह है कि होली को बसंत महोत्सव या फिर का महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है.

एक प्राचीन त्योहार है होली

हिंदुओं में मनाए जाने वाले प्राचीन त्योहारों में से एक है होली और यह त्योहार ईसा मसीह के जन्म से भी कई सदियों पहले से हिंदू मनाते आ रहे हैं. इतना ही नहीं जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र मैं भी होली के त्योहार का वर्णन दिया हुआ है. जो मंदिर भारत में प्राचीन काल से हैं उनमें होली की मूर्तियां भी दीवारों पर बनी हुई है. 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है जहां पर होली का वर्णन करती हुई बहुत सारी मूर्तियां हैं. इन मूर्तियों में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे पर रंग लगा रहे हैं. इतना ही नहीं कई सारे ऐसे मध्ययुगीन चित्र है, जैसे 16वीं सदी के अहमदनगर चित्र, मेवाड़ पेंटिंग, बूंदी के लघु चित्र, सब में अलग अलग तरह होली मनाते देखा जा सकता है.

होली के त्यौहार पर उपयोग होने वाले रंग

पहले जो रंग होली के त्यौहार पर उपयोग किए जाते थे उन्हें टेसू या पलाश के फूलों से बनाया जाता था और उन्हें गुलाल कहते थे. उन रंगों को त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता था क्योंकि उनमें कोई भी बाहरी रसायन नहीं मिलाया जाता था. लेकिन आज के समय में रोग लोग रंग पुराने तरीकों से नहीं बनाते अब उसमें कठोर रसायन का उपयोग होता है जो कि त्वचा और स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं होते. और यही कारण है बहुत से लोगों ने होली के त्यौहार को रंगों से बनाना बंद कर दिया है.

होली समारोह

होली का त्यौहार सिर्फ 1 दिन ही नहीं बनाया जाता इस बार को 3 दिन तक बनाया जाता है.

दिन 1 : पूर्णिमा के दिन एक थाली में रंगों को सजाया जाता है और परिवार का सबसे बड़ा सदस्य बाकी सदस्यों पर रंग छिड़कता है।
दिन 2 : इसे पूनो भी कहते हैं। इस दिन होलिका के चित्र जलाते हैं और होलिका और प्रहलाद की याद में होली जलाई जाती है। अग्नि देवता के आशीर्वाद के लिए मांएं अपने बच्चों के साथ जलती हुई होली के पांच चक्कर लगाती हैं।
दिन 3 : इस दिन को ‘पर्व’ कहते हैं और यह होली उत्सव का अंतिम दिन होता है। इस दिन एक दूसरे पर रंग और पानी डाला जाता है। भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों पर भी रंग डालकर उनकी पूजा की जाती है।

दोस्तों यह जानकारी होली के त्यौहार के बारे में हम आशा करते हैं कि अब आप समझ गए होंगे कि होली के त्यौहार का महत्व क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है. हमारी तरफ से आप सभी को होली के त्योहार की बहुत-बहुत शुभकामनाएं. आशा करते हैं कि आप का होली का त्योहार आपके जिंदगी में रंगों के साथ साथ खुशियां भी लेकर आए.