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रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है? – Story of Raksha Bandhan Festival in hindi

Raksha Bandhan Festival

Story of Raksha Bandhan Festival in hindi: रक्षाबन्धन हिन्दू धर्म का बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। जो भारत देश के सभी राज्यों में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं , रक्षाबंधन भाई बहनों का त्यौहार है। यह त्यौहार हिन्दू श्रावण मास (जुलाई , अगस्त के माह ) में मनाया जाता है। यह त्यौहार भाई- बहन के प्यार का प्रतीक है। इस त्यौहार में सभी बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हैं और भाई उन्हें सदैव उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं।

हालांकि वर्तमान में इस त्यौहार की व्यापकता इससे भी कही अधिक है। वर्तमान समय में यह त्यौहार केवल भाई बहन तक सीमित नहीं है बल्कि राखी बांधना सिर्फ भाई- बहन के बीच का कार्यकलाप नहीं है , आज लोग पर्यावरण की रक्षा के लिए , लोगों के हितों की रक्षा के लिये भी राखी बांधते हैं। आध्यात्मिक महत्व के साथ – साथ इस त्यौहार का ऐतिहासिक महत्व भी है। इस त्यौहार के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं।

Raksha Bandhan Festival

क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्यौहार : Story of Raksha Bandhan in hindi

रक्षाबंधन का त्यौहार भाई बहन के अमूल्य रिश्ते को दर्शाता है। रेशम का धागा भाई की कलाई पर बांध बहन अपने भाई से अपनी रक्षा का प्रण लेती है। वैसे तो भाई का बहन के प्रति कर्तव्य व बहन का भाई के लिए प्रेम यह अमूल्य बन्धन किसी एक दिन का मोहताज नहीं है, परन्तु रक्षाबंधन के ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व की वजह से इस त्यौहार का इतना महत्व है, कहते हैं कि ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के बिना शायद आज इस पर्व का कोई अस्तित्व नहीं रहता। चलिए जानते हैं इस पर्व को मनाने के पीछे क्या कारण है और कौन – कौन सी कथाएं प्रचलित हैं।

महाभारत युग से जुड़ी कथा –

यह कथा महाभारत से जुड़ी हुई है। इस त्यौहार के विषय में महाभारत में दो कथाएं प्रचलित हैं। पहली कथा के अनुसार जब श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशु पाल का वध भरी सभा में किया और जब सुदर्शन चक्र उनके हाथ में वापस आया तो उस समय उससे भगवान श्री कृष्ण की उंगली कट गई और उससे रक्त बहने लगा। जब द्रौपदी ने यह दृश्य देखा तो वह व्याकुल हो गई और उन्होंने अपनी साड़ी का थोड़ा सा हिस्सा फाड़ कर श्री कृष्ण की उंगली में बांध दिया। जिससे भगवान कृष्ण की उंगली का रक्तस्राव रुक गया। द्रौपदी के इस कृत्य से श्री कृष्ण भावुक हो गए और श्री कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वे सदैव इस साड़ी की लाज रखेंगे और सदैव अपनी बहन द्रौपदी की रक्षा करेंगे। इसी वचन को निभाने के लिये श्री कृष्ण ने दुःहशासन द्वारा द्रौपदी के चीरहरण के समय उनकी लाज रखी थी।

दूसरी कथा श्री कृष्ण और धर्मराज युधिष्ठिर के विषय में है। एक बार की बात है धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा , “ हे भगवन !” मुझे रक्षाबंधन की वह कथा सुनाइये जिससे मनुष्य की बाधाएं एवं दुःख दूर होते हों । इस पर भगवान बोले , “हे धर्मराज युधिष्ठिर” , मैं. आपको प्राचीन समय की एक घटना सुनाता हूं । प्राचीन समय की बात है एक बार असुरों और देवताओं में युद्ध हुआ और यह युद्ध बारह वर्षों तक चला। इस युद्ध में देवराज इन्द्र की पराजय हुई । जिस कारणवश सभी देवतागण क्रांति विहीन हो गए । देवराज इन्द्र दुःखी होकर विजयी होने की आशा का त्याग करके सभी देवताओं सहित अमरावती चले गए ।

इसके पश्चात विजयी दैत्यों ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया और यह घोषणा कर दी कि देवराज इन्द्र सभा में न पधारें और सभी देवतागण एवं मनुष्य किसी भी प्रकार का यज्ञ न करें , कर्म का त्याग करके दैत्यों की पूजा अर्चना करें और यदि किसी को कोई भी आपत्ति हो तो वह राज्य छोड़कर चला जाए।

दैत्यराज की इस घोषणा के पश्चात सभी यज्ञ कर्म व वेद पठन , पाठन सभी उत्सव राज्य में समाप्त कर दिए गए । धर्म के कार्य रुकने से देवताओं की शक्तियों का नाश होने लगा और उनका बल घटने लगा । इस परेशानी का हल ढूंढने के लिए देवराज इन्द्र स्वयं देवगुरू ब्रहस्पति के पास गए । वे बोले , “ हे गुरु ! मैं शत्रुओं से प्राणान्त संग्राम करना चाहता हूँ ।“ देवराज इन्द्र को परेशान देखकर देव गुरु ब्रहस्पति ने कहा कि हे देवराज होनी बलवान होती है , जो होना है , वह होकर ही रहेगा, इसलिए इस समय आपका क्रोध करना व्यर्थ है । परन्तु देवराज इन्द्र नहीं माने तब देव गुरु ब्रहस्पति ने देवराज इन्द्र की हठधर्मिता और उत्साह को देखते हुए उन्हें रक्षा विधान करने को कहा । श्रावण पूर्णिमा को प्रातःकाल रक्षा विधान सम्पन्न किया गया । देव गुरु ब्रहस्पति ने इन्द्र देव को एक मन्त्र दिया –

“येनवद्यो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वाममिवध्नामि रक्षे माचल माचल ।“

इस मन्त्र के उच्चारण से ही देवगुरू बृहस्पति ने श्रावण के दिन रक्षा विधान किया । इन्द्र देव ने सहधर्मिणी इन्द्राणी के साथ वृत्त संहारक ब्रहस्पति के उस वाणी का पालन करके दानवों पर विजय प्राप्त की । कहा जाता है कि आज भी कई लोग इसी मन्त्र का उच्चारण करके इस त्यौहार को मनाते हैं ।

वैसे तो इस त्यौहार के विषय में बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं। परंतु बचपन से सबसे अधिक प्रचलित कहानी इस त्यौहार के विषय में रानी कर्णवती व राजा हुमायूं से संबंधित है। यह कहानी मध्य कालीन युग के समय की है, उस समय की है जब राजपूतों और मुस्लिम लोगों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णवती चित्तौड़ के सम्राट की धर्मपत्नी व चित्तौड़ की महारानी थी। सम्राट की मृत्यु के बाल चित्तौड़ और वहां की प्रजा की रक्षा का भार रानी पर आ गया।

रानी इस विषय को लेकर बहुत चिंतित रहने लगी। उसी समय गुजरात के सम्राट बहादुर शाह से अपने राज्य और प्रजा की रक्षा के लिए रानी कर्णवती ने सम्राट हुमायूं से सहायता माँगी। रानी ने सम्राट हुमायूं को राखी भेजी और उनसे अपनी राज्य व प्रजा की रक्षा करने का आग्रह किया। सम्राट. हुमायूं ने रानी कर्णवती की राखी को स्वीकार कर उन्हें अपनी बहन का दर्जा दिया और उनके राज्य व प्रजा की बहादुर शाह से रक्षा भी की। माना जाता है कि तभी से रक्षाबंधन का यह त्यौहार मनाया जाता है। तभी से सभी। बहने अपने-अपने भाइयों के हाथ पर रक्षासूत्र बाँधती है और भाई सदैव उनकी रक्षा करने का वचन देते है।

तुलसी व नीम के पेड़ को राखी बांधने की प्रथा :

प्राचीन समय से चली आ रही प्रथा के मुताबिक पहले भाई को राखी बांधने से पहले पर्यावरण व प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी व नीम के पेड़ को राखी बांधी जाती थी, जिसे वृक्ष रक्षाबंधन भी कहते थे। परन्तु वर्तमान समय में इस प्रथा का प्रचलन नहीं है। आज लोग अपने भाई, दोस्त, गुरु इत्यादि को राखी बांधते है।

यम देवता और मां यमुना की कहानी :

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार मृत्यु के देवता यम जब अपनी बहन यमुना से 12 वर्षों तक नहीं मिले तब यमुना बहुत दुखी हुई और मां गंगा से विनती की कि वह भाई यम तक उनका सन्देश पहुंचा दें कि उनकी बहन यमुना उनकी प्रतीक्षा कर रही है। बहन का सन्देश प्राप्त होते ही जब यम उनसे मिलने पहुंचे तो यमुना जी बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने यम के लिए विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए। यम इस आवभगत व स्नेह से बेहद खुश हुए और यमुना से एक वरदान मांगने को कहा, तब यमुना ने कहा कि यम आप पुनः जल्द ही अपनी बहन से भेंट करने आएं यह सुनकर यम अपनी बहन के प्रेम व स्नेह से भाव विभोर हो गए और यमुना को अमरत्व का वरदान दे दिया। तभी से भाई बहन के इस प्रेम को रक्षाबंधन के तौर पर याद किया जाता है।

वर्तमान में यह त्यौहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हम भारतवासी इसे बहुत गर्व के साथ मनाते हैं। जहां कई लोग इस त्योहार को उत्साह व खुशी के साथ मनाते हैं। वहीं कई लोग भ्रूण में ही भाई की बहनों को मार देते हैं। आज कई भाईयों की कलाई रक्षाबंधन पर इसलिये भी सूनी रह जाती है क्योंकि उनके माता पिता उनकी बहनों को इस दुनिया में आने ही नहीं देते। यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि जहां हमारे देश के विधान शास्त्रों में कन्या पूजन का विधान है वहीं कन्या भ्रूण हत्या के अनगिनत मामले भी दिन प्रतिदिन सामने आ रहे हैं।

रक्षाबंधन का त्यौहार हम सभी लोगों को यह याद दिलाता है कि भाई बहन एक दूसरे के जीवन में कितना महत्व रखते हैं । इसलिए सभी लोगों को कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ कठोर कदम उठाने चाहिए ।

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