Story of Dhanteras in hindi: दिवाली आने को है और घर-घर दिवाली की तैयारी शुरू हो चुकी है. भारत में हर त्योहार का अपना ही एक महत्व है. हमारे यहां हर तैयार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसा ही एक त्योहार है धनतेरस. हिन्दू धर्म में धनतेरस को काफी धूमधाम से मनाया जाता हैं. धनत्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था और इसीलिए इस दिन को ‘धनतेरस’ के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लोग गहनों और बर्तन की खरीदारी जरूर करते हैं. इसलिए बाजारों में काफी भीड़ भी देखने को मिलती है. इस दिन का काफी महत्व है और अगर इस दिन लोग विधि अुनसार पूजा करें तो उन्हें लाभ जरूर मिलता है.
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से भी ऊपर पर रखा जाता है. हमारे देश में एक कहावत आज भी बहुत प्रचलित है कि ‘पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया’ इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है. जो भारतीय संस्कृति के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल है. अगर हम शास्त्रों की माने तो समुद्र मंथन के दौरान त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे. इसलिए इस दिन को ‘धन त्रयोदशी’ भी कहा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन के वक्त बहुत ही दुर्लभ और कीमती वस्तुओं के अलावा शरद पूर्णिमा का चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी के दिन कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धनवंतरी और कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को लक्ष्मी का समुद्र से अवतरण हुआ. इसी वजह से दीपावली के दिन मां लक्ष्मी का पूजन और उसके दो दिन पहले त्रयोदशी को भगवान धनवंतरी का जन्मदिवस यानी धनतेरस मनाया जाता है. इस दिन की मान्यता है कि खरीदी गई कोई भी वस्तु शुभ फल प्रदान करती है और लंबे समय तक चलती है. धनतेरस के दिन धातु को खरीदना काफी अहम माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन धातु को खरीदने से भाग्य अच्छा बनता है. परंपरा यह है कि धनतेरस के दिन सोना और चांदी जरूर खरीदना चाहिए. आप अपने बजट के मुताबिक सोना और चांदी के सिक्के, गहने, मूर्ति आदि जैसी चीजों खरीद सकते है. लेकिन अगर आप सोना, चांदी की वस्तु नहीं खरीद सकते तो इस दिन तांबा खरीदना भी काफी अच्छा माना जाता है. तांबा भी आपकी किस्मत को चमका सकता है. इस दिन आप तांबे के बर्तन खरीदे जा सकते हैं. तांबा सेहत के लिए भी अच्छा कहा जाता है. साथ ही आप पीतल भी खरीद सकते हैं क्योकि ऐसा कहा जाता है कि पीतल की खरीदारी की जाए तो इस का तेरह गुना अधिक लाभ मिलता है. दरअसल, भगवान धनवंतरी को नारायण भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है. धनवंतरी की चार भुजाएं हैं, जिनमें से दो भुजाओं में वह शंख और चक्र धारण किए हुए हैं तो दूसरी दो भुजाओं में औषधि के साथ वह अमृत कलश लिए हुए हैं. ऐसा कहा गया है कि यह अमृत कलश पीतल का बना हुआ है, क्योंकि पीतल भगवान धनवंतरी की प्रिय धातु है. यही वजह है कि लोग कहते हैं धनतेरस के दिन पीतल की कोई वस्तु खरीदी जाए तो ज्यादा लाभ देती है, लेकिन इस दिन आप गलती से भी शीशा, लोहा या फिर एल्युमिनियम की चीज नही खरीद वरना आप को भारी नुकसान हो सकता है. धनतरेस पर धन्वंतरि, मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. इसके आप पहले एक लकड़ी का पाटा लें और उस पर स्वास्तिक का निशान बनाएं. उसके बाद पाटे पर तेल का दिया जलाकर रख दें, फिर आस-पास गंगाजल की छीटें मारे और स्थान को शुद्व करें. दीपक पर रोली और चावल का तिलक लगाएं. दीपक में थोड़ी-सा मीठा डालकर भोग लगाएं और फिर देवी लक्ष्मी और गणेश भगवान को कुछ पैसे चढ़ाएं. दीपक का आर्शीवाद लेकर दिए को मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा में रखें. इस त्योहार के पीछे एक लोक कथा बहुत मशहूर है. कथा के अनुसार एक वक्त में एक राजा हुआ करते थे, जिनका नाम हेम था. दैव कृपा से उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा, उस के ठीक चार दिन के बाद उस की मृत्यु हो जाएगी. वह राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और अपने बेटे यानी राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया, जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े. लेकिन एक दिन दैवयोग से एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया. राजकुमार के विवाह के बाद ही विधि का विधान सामने आया और दोनों विवाह के चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे. जब यमदूत राजकुमार के प्राण ले जा रहे थे तो उसी वक्त राजकुमार की पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा. परंतु विधि के मुताबित यमदूत को राजकुमार के प्राण लेने पड़े. यमराज को जब यमदूत यह बात बता रहे थे, उसी वक्त उनमें से एक यमदूत ने यमदेवता से विनती की. हे! यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिस से मनुष्य को अकाल मृत्यु से मुक्ति मिली. यमदूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले, हे! दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की ही गति है. इससे मुक्ति का एक आसान तरीका सिर्फ एक है और वो मैं तुम्हें बताता हूं. यमदेवता बताते हैं कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है. उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है, यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं.
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