Sant Ravidas Biography in Hindi : 15 वीं शताब्दी के एक महान संत, दर्शनशास्त्री, कवि, समाज – सुधारक और ईश्वर के अनुयायी संत रविदास की आज हम बात करने वाले हैं. आज हम उनके जीवन के बारे में जानेंगे.

Sant Ravidas Biography in Hindi
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संत रविदास का जन्म: (sant ravidas jayanti)
संत रविदास का जन्म 15 वीं शताब्दी में भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी हुआ था. रविदास की माता का नाम कालसा देवी और पिता का नाम बाबा संतोख दास जी था. वैसे संत रविदास के जन्म की तारीख को लेकर हमेशा विवाद रहा है क्योंकि कुछ लोगों का मानना है कि रविदास का जन्म 1376, 1377 और कुछ का कहना है कि ये 1399 सीइ में हुआ था. रविदास के पिता जी मल साम्राज्य के राजा नगर के सरपंच थे और खुद जूतों का व्यापार व उसकी मरम्मत का काम करते थे.
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संत रविदास का बचपन: ( Ravidas Childhood )
संत रविदास बचपन से ही बेहद बहादुर और ईश्वर के बहुत बड़े भक्त थे, लेकिन बाद में उन्हें उच्च जाति के द्वारा उत्पन्न भेदभाव की वजह से बहुत संघर्ष करना पड़ा था. जिस का उन्होंने सामना किया और अपने लेखन के द्वारा रविदास ने लोगों को जीवन के इस तथ्य से अवगत करवाया था. उन्होंने हमेशा लोगों को सिखाया कि अपने पड़ोसियों को बिना भेद-भेदभाव के प्यार करो. पूरी दुनिया में भाईचारा और शांति की स्थापना के साथ ही उनके अनुयायीयों को दी गयी महान शिक्षा को याद करने के लिये भी संत रविदास का जन्म दिवस का मनाया जाता है.
संत रविदास की शिक्षा : (Ravidas School Life )
बचपन में संत रविदास अपने गुरु पंडित शारदा नंद के पाठशाला गए थे, लेकिन बाद में कुछ उच्च जाति के लोगों ने उन्होंने रोकने की कोशिश की ताकि वह उस स्कूल में दाखिला न ले पाएं. लेकिन वहीं पंडित शारदा नंद ने यह महसूस किया था कि रविदास कोई सामान्य बालक नहीं है बल्कि एक ईश्वर के द्वारा भेजी गयी संतान है. आखिर में पंडित शारदानंद ने बिना किसी की सुने रविदास को अपनी पाठशाला में दाखिला दिया था और उनकी शिक्षा की शुरुआत हुई थी.
रविदास बहुत ही तेज और होनहार थे और अपने गुरु के सिखाने से ज्यादा प्राप्त करते थे. पंडित शारदा नंद जी उनसे और उनके व्यवहार से बहुत प्रभावित रहते थे. शारदा नंद का विचार था कि एक दिन रविदास आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध और महान सामाजिक सुधारक के रुप में जाने जायेंगे.
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संत रविदास जयंती : ( Ravidas Jayanti )
हमारे देशभर में खुशी और बड़े उत्साह के साथ माघ महीने की पूर्ण चन्द्रमा के दिन हर साल संत रविदास की जयंती मनाई जाती है. इस खास दिन के मौके पर आरती कार्यक्रम के दौरान मंत्रों के रागों के साथ लोग एक नगर कीर्तन जुलूस निकलते हैं और ये प्रथा कई सालों से चली आ रही है. इसमें गीत – संगीत, गाना और दोहा आदि सड़कों पर बने मंदिरों में गाए जाते हैं.
संत रविदास के अनुयायी और कई भक्त उनके जन्मदिवस के खास मौके पर गंगा- स्नान करने भी जाते है और घर या मंदिर में बनी छवि की पूजा-अर्चना करते हैं. संत रविदास के जन्मदिवस के पर्व को प्रतीक बनाने के लिए वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर के श्री गुरु रविदास जन्म स्थान पर बना मंदिर बहुत प्रसिद्ध स्थान हैं, इस स्थान पर हर साल वाराणसी में लोग इसे बेहद भव्य तरीके से मनाते हैं. वहीं इस भव्य उत्सव में रविदास के भक्त और दूसरे अन्य लोग पूरे विश्व से इस उत्सव में शामिल होने के लिए वाराणसी आते हैं.
रविदास का विवाह:
भगवान के प्रति उनकी भक्ति की वजह से वे अपने पेशेवर पारिवारिक व्यवसाय से नहीं जुड़ पा रहे थे. इसी वजह से उनके माता—पिता परेशान रहते थे. इस परेशानी के हाल में उनके माता-पिता ने उनकी शादी काफी छोटी उम्र में ही श्रीमती लोना देवी से कर दी. जिसके बाद रविदास को एक पुत्र रत्न की प्रप्ति भी हुई. जिसका नाम विजयदास पड़ा.
शादी के बाद भी रविदास सांसारिक मोह की वजह से पूरी तरह से अपने पारिवारिक व्यवसाय के ऊपर ध्यान नहीं दे पा रहे थे. उनके इस व्यवहार से परेशान होकर उनके पिता ने सांसारिक जीवन को निभाने के लिए बिना किसी मदद के उनको खुद से और पारिवारिक संपत्ति से अलग कर दिया. जिस के बाद रविदास अपने ही घर के पीछे रहने लगे और पूरी तरह से अपनी सामाजिक मामलों से जुड़ गए.
एक दिलचस्प किस्सा:
स्कूल में पढ़ने के दौरान रविदास पंडित शारदानंद के बेटे के अच्छे मित्र बन गए. एक दिन दोनों एक साथ लुका-छिपी खेल रहे थे, पहली बार रविदास जी जीते और दूसरी बार उनके मित्र जीत गए. अगली बार, रविदास जी की बारी आई, लेकिन अंधेरा होने की वजह से वो दोनों अपना खेल पूरा नहीं कर पाए. लेकिन दोनों ने इसी खेल को अगले दिन सुबह जारी रखने का फैसला किया.
अगली सुबह रविदास जी तो आये लेकिन उनके मित्र नहीं आये. रविदास जी ने बहुत लंबे समय तक इंतजार किया लेकिन वह फिर भी नहीं आए तो वह अपने मित्र के घर ही चले गए. मित्र के घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनके मित्र के माता-पिता और पड़ोसी रो रहे थे.
जब उन्होंने वजह पूछी तो पता चला कि उनके मित्र की मौत हो गई है, जिसे सुनकर वह हक्का-बक्का रह गए. उसके बाद उनके गुरु रविदास को अपने बेटे की लाश के पास ले गए. वहाँ पहुँचने पर रविदास ने अपने मित्र से कहा कि उठो ये सोने का समय नहीं है दोस्त, ये तो लुका-छिपी खेलने का वक्त है. जैसै कि जन्म से ही गुरु रविदास दैवीय शक्तियों से समृद्ध थे, रविदास के यह शब्द सुनते ही उनके मित्र फिर से जी उठे. इस आश्चर्यजनक पल को देखने के बाद उनके माता-पिता और पड़ोसी चकित रह गए.
मीरा बाई से रविदास का जुड़ाव:
संत रविदास को मीरा बाई के आध्यात्मिक गुरु के रुप में माना जाता है. मीरा बाई राजस्थान के राजा की पुत्री और चित्तौड़ की रानी थी. मीरा संत रविदास के अध्यापन से बहुत प्रभावित थी और उनकी बहुत बड़ी अनुयायी भी बनी. अपने गुरु के सम्मान में मीरा बाई ने कई कविताएं भी लिखी है.