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मिर्जा ग़ालिब की प्रसिद्ध शायरी – 20 Most Popular Mirza Ghalib shayari in Hindi

Most Popular Mirza Ghalib shayari in Hindi

Popular Mirza Ghalib shayari in Hindi :

—#1—

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

mirza ghalib shayari

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—#2—

काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’

शर्म तुम को मगर नहीं आती

—#3— Top Sher Of Mirza Ghalib

आह को चाहिये इक उम्र असर होते तक

कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

—#4—

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे

कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और

—#5—

सादगी पर उस के मर जाने की हसरत दिल में है

बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है

देखना तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा

मैंने यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है

—#6—

लाज़िम था के देखे मेरा रास्ता कोई दिन और

तनहा गए क्यों, अब रहो तनहा कोई दिन और

—#7—

मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब

यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी

ghalib ki shayari

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—#8—

कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़

पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले

—#9—

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता

डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता

—#10—

हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,

वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !

—#11—

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता

—#12—

तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब

के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे

Mirza Ghalib shayari in hindi

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—#13—

मेरे कोई दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को

ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता

—#14—

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

—#15—

इतनी शिद्दत से मे पड रहा तुझे ऐ गालिब…
न जाने किपने दर्द से गुजरा तु इन शिधतो के लिए।।।

—#16—

तू मुझे भूल गया हो तो पता बतला दूं
कभी फ़ितराक में तेरे कोई नख़्चीर भी था

—#17—

क़ैद में है तेरे वहशी को वही ज़ुल्फ़ की याद
हां कुछ इक रंज गरां बारी-ए-ज़ंजीर भी था

—#18— Mirza Ghalib Sad Shayari

हम थे मरने को खड़े पास न आया न सही
आख़िर उस शोख़ के तरकश में कोई तीर भी था

—#19—

बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब

जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है

—#20—

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का

उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले