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विश्लेषण: भारतीय एजुकेशन सिस्टम कितना सही है या कितना गलत (education system in india)

The Education System in India
The Education System in India

The Education System in India : भारतीय एजुकेशन सिस्टम से हम सभी भली भांति परिचित हैं। और इसके अच्छे और बुरे प्रभाव से हम सभी को दो चार होना पड़ता है। आज हम एक विश्लेषण करने जा रहें हैं भारतीय एजुकेशन सिस्टम का जिसकी सहायता से हम ये जानेंगे की हमारा एजुकेशन सिस्टम कितना सही और कितना गलत है। इसको समझने के लिए सबसे पहले हमे थोड़ा इतिहास में जाना पड़ेगा।

The Education System in India

The Education System in India


सबसे पहले शुरुआत में जब अंग्रेज भारत में आये तो वो लोग यहाँ की विरासत और ज्ञान के भण्डार को देख कर चकित रह गए। लार्ड मेकौले ने 2 फरवरी 1835 को ब्रिटिश पार्लियामेंट को एक खत लिखा जिसमे उन्होंने भारतियों और उनकी शिक्षा पद्यति के बारें में बताया। उन्होंने इस बात की पुरजोर वकालत की भारत में ब्रिटिशर्स का एजुकेशन सिस्टम लागू करना चाहिए जिससे की वो यहाँ पर आसानी से राज कर सकें।

दरअसल अंग्रेजो को भारत में राज करने के लिए ऐसे लोगों की जरूरत थी जो उनके इंस्ट्रक्शन को मानते हुए उनके अनुरूप कार्य कर सके जैसे की किसी क्लेरिकल काम में जरूरत होती है। उन्हें ऐसे व्यक्ति कतई नहीं पसंद थे जो की उनके इंस्ट्रक्शन पर सवाल उठाये। दरअसल ब्रिटिशर्स के एजुकेशन सिस्टम से पहले भारत में गुरुकुल की परंपरा थी। भारत में ही विश्व के सबसे पुरातन विश्विद्यालय नालंदा और तक्षिला मौजूद थे। भारतीय शिक्षा पद्यति में गुरुकुल की परंपरा हुआ करती थी। जहाँ पर संस्कृत, विज्ञान और वैदिक गणित की पढ़ाई होती थी। भारतियों की सांस्कृतिक विरासत बहुत ही उत्तम और भव्य थी। आर्यभट्ट और चाणक्य सब यहीं पर थे।

हमारा एजुकेशन सिस्टम ब्रिटिशर्स के द्वारा बनाये गए सिस्टम पर ही आधारित है। जिसमे नॉलेज डिलीवर करने की बजाये चीजों को रटने और रटाने पर जोर दिया जाता है। आइये इसकी डिटेल में कुछ पैरामीटर्स पर इसकी पड़ताल करते है।

थ्योरेटिकल – प्रैक्टिकल

हमारा एजुकेशन सिस्टम थेओरिटिकल बेस्ड है न की प्रैक्टिकल बेस्ड। बच्चा न्यूटन के फॉर्मूले तो जनता है पर ये नहीं जानता की वो आये कहाँ से है। हाँ कभी कभी सेब की कहानी जरूर सुना दी जाती है। हिस्ट्री पढ़ने वाला बच्चा ये तो जानता है की मुगलों ने भारत पर आक्रमण कब किया पर ये नहीं जानता की क्यों किया। वो ये तो जानता है की महासागर की गहराई कितनी है पर वो ये नहीं जानता की उसकी गहरायी कैसे मापी गयी है। हमारा एजुकेशन सिस्टम बच्चो को केवल चीजों को रटा रहा है बजाए उन्हें तर्कसंगत बनाने की। हम बच्चो को प्रैक्टिकल नॉलेज देने की आवशयकता है।

क्यूरोसिटी या जिज्ञासा

इसमें कुछ कमी पेरेंट्स की भी होती है। अब आप कहेंगे की ये कैसे हो सकता है? हम तो अपने बच्चो को अच्छे से अच्छी एजुकेशन दिलाते हैं। याद करिए वो दिन जब आपके बच्चे ने आपसे ये पूछा था की सूरज दिन में क्यों निकलता है या तारे बैडरूम में क्यों नहीं आते है और ऐसा ही बहुत सारे सवाल जिनका आपने कभी जवाब नहीं दिया या टाल दिया या फिर उन्हें डांट कर भगा दिया। इससे होता ये है की बच्चे की क्यूरोसिटी या जिज्ञासा खत्म होती जाती है। और धीरे धीरे वो आपसे सवाल पूछने ही बंद कर देता है और सिर्फ चीजों को याद करना और रटना शुरू कर देता है।

ज्यादा मार्क्स ज्यादा इज्जत

इसके साथ ही हमारे समाज में बच्चे के द्वारा लाये गए मार्क्स पर ही हम उसकी अवलोकन करते हैं। किसी भी बच्चे को प्यार और सम्मान उसके द्वारा लाये गए मार्क्स के अकॉर्डिंग ही मिलता है न की उसकी प्रतिभा या किसी विशेष कला के अनुसार। जैसे की अगर तुम क्लास में फर्स्ट आओगे तो तुम्हे नई साइकिल मिलेगी। या अगर तुम क्लास में फर्स्ट आओगे तो तुम्हे नया गेमिंग कंसोल मिलेगा इत्यादि। कभी को पैरेंट ये कहता है की अगर उसका बच्चा अच्छा डांस करेगा या गाना गायेगा या कोई खेल में अव्वल आएगा तो उसे उसका रिवॉर्ड मिलेगा। हम तो बल्कि अपने बच्चे को कम मार्क्स लाने पर डांटते फटकारते हैं। हम उनकी तुलना शर्मा जी और वर्मा जी के बच्चो से करने लगते हैं। हम ये भूल जाते हैं की हर बच्चा अलग होता है और उसकी पसंद नापसंद भी अलग होती है।

अगर हमें आने वाली पीढ़ी को बचाना है तो हमे उन्हें थेओरिटिकल नॉलेज की बजाये प्रैक्टिकल नॉलेज देने की जरूरत है। अन्यथा बच्चे ऐसे ही कम मार्क्स लाने की वजह से डेप्रेशन में जाते रहेंगे और सुसाइड करते रहेंगे। हमे अपने एजुकेशन सिस्टम को सुधरने के साथ साथ बच्चो को समझने की भी जरूरत है। तभी हम आने वाले कल में एक सुखद और सफल भारत की कल्पना कर सकते हैं।