Dr Hargobind Khorana biography in Hindi : हम चाहे अपने भारत को ले लें या अन्य देशों को दुनिया में हर जगह देश विदेश में कुछ ऐसे लोग होते हैं, जिन्होंने अपने कार्यों से पूरी दुनिया को चौंका दिया है। उन्हीं प्रसिद्ध लोगों में से एक हैं डॉ हरगोविंद खुराना। डॉ हरगोविंद खुराना भारत के ऐसे वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में कई ऐसी महत्वपूर्ण खोजें की हैं जिनसे चिकित्सा के क्षेत्र को नई दिशा मिली है।

Dr Hargobind Khorana biography in Hindi
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जब से इस सृष्टि की रचना हुई तब से ही मानव, जीव जन्तु, पेड़ पौधे सृष्टि का प्रमुख हिस्सा रहे हैं। आज भी हम जब किसी मानव , जीव जन्तु की संतान का जन्म होते देखते हैं तो हमारे मन में यही प्रश्न आता है कि इन संतानों के नाक नक्श, रंग-रूप, बनावट उनके माता पिता से इतने मिलते जुलते कैसे हैं? इन्हीं प्रश्नों का उत्तर ढूंढते हुए कई वैज्ञानिकों ने बहुत सी खोजें की जैसे – वर्णसंकर प्रजातियों को उत्पन्न करना , मानव व पशु पक्षियों के क्लोन बनाना , तथा मानव, जीव जन्तुओं पर खोज के साथ ही वैज्ञानिकों ने पेड़ पौधों की नई प्रजातियों की खोज में भी सफलता पाई। वैज्ञानिकों ने अपनी खोजों के दौरान पाया कि मानव हो या जीव जन्तु या फिर पेड़ पौधे, इन सभी में एक जीवन से दूसरे जीवन की उत्पत्ति होना , उनके गुणों व रंग रूप का मिलना यह सब गुणसूत्र या जीन्स की संरचना पर निर्भर करता है। इन सभी खोजों के लिए कुछ वैज्ञानिकों का विशेष योगदान रहा, नीरेन बर्ग, रोबर्ट हौले तथा हर गोविंद खुराना। डॉ हरगोविंद खुराना जी को जींस सम्बन्धी खोजों के लिए नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। तो आइए हम आपको प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ हरगोविंद खुराना के जीवन के विषय में विस्तार से बताते हैं।
डॉ हरगोविंद खुराना का संक्षिप्त जीवन परिचय : |
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जन्म – : | 9 जनवरी 1922 |
जन्मस्थान – : | जिला रायपुर, मुल्तान, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) |
पिता का नाम – : | श्री गणपत राय खुराना |
माता का नाम – : | श्री मती कृष्णा देवी खुराना |
पत्नी का नाम – : | एस्थर एलिजाबेथ सिल्बर |
विवाह का सन् – : | 1952 |
परिवार – : | संतान (3); पुत्र- डेव रॉय , पुत्री- एमिली एन्न , पुत्री- जूलिया एलिजाबेथ |
शिक्षा – : | एम. एस. सी (1945 में) , पी. एच. डी (1948 में) |
करियर – : | वैज्ञानिक |
कार्यक्षेत्र – : | मॉलीक्यूलर बॉयलॉजी |
संस्थाएं – : | एम. आई. टी (1970 से 2007) , विस्कॉनि्सन विशवविद्यालय, मैडिसन (1960 से 1970) , ब्रिटिश कोलम्बिया विश्वविद्यालय (1952 से 1960) , कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (1950 से 1952) , स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, ज्यूरिख (1948 से 1949) , पंजाब विश्वविद्यालय, लिवरपूल विश्वविद्यालय |
पुरस्कार – : | चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार (1968), गैर्डनर फाउंडेशन इंटरनेशनल अवार्ड , लुईसा फाउंडेशन इंटरनेशनल अवार्ड, बेसिक मेडिकल रिसर्च के लिए एल्बर्ट लॉस्कर पुरस्कार , पद्म विभूषण |
राष्ट्रीयता – : | भारतीय , अमरीकी (वर्ष – 1966) |
मृत्यु – : | 9 नवंबर 2011 |
मृत्युस्थान – : | कॉनकॉर्ड, मैसाचुसिट्स, अमेरिका |
डॉ हरगोविंद खुराना का प्रारंभिक जीवन :
महान वैज्ञानिक डॉ हरगोविंद खुराना का जन्म ब्रिटिश कालीन भारत के पंजाब नामक स्थान के जिला रायपुर, मुल्तान के एक छोटे से गांव में 9 जनवरी 1922 में हुआ था। अब यह स्थान पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा हो चुका है। उनके पिता जी का नाम श्री गणपत राय खुराना था, जो पटवारी का कार्य करते थे। डॉ हरगोविंद खुराना जी की माता जी का नाम श्री कृष्णा देवी खुराना था, जो कि एक गृहिणी थी। उसके अलावा डॉ हरगोविंद खुराना जी के परिवार में एक बहन और चार भाई थे, जिनमें डॉ खुराना जी सबसे छोटे थे। डॉ खुराना जी का परिवार एक मध्यम वर्गीय परिवार था। गरीबी होने के बावजूद हरगोविंद खुराना जी के पिता जी ने अपने बच्चों की पढ़ाई पर भरपूर ध्यान दिया क्योंकि वे अच्छी तरह पढ़ाई के महत्व को समझते थे, इसलिए बच्चों की पढ़ाई को लेकर वे हमेशा गम्भीर रहे और स्कूल से आने के बाद खुद भी उन्हें घर पर पढ़ाते थे।
डॉ खुराना जब मात्र 12 साल के थे, तभी उनके पिता जी की मृत्यु हो गई और इस विषम परिस्थिति में खुराना जी के बड़े भाई नंदलाल ने उनकी पढ़ाई लिखाई की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। यह डॉ हरगोविंद खुराना जी के माता पिता द्वारा दिए गए अच्छे संस्कार, शैक्षणिक माहौल और भाई की कड़ी मेहनत का ही परिणाम था कि गांव के पेड़ के नीचे पढ़ने वाला एक साधारण सा लड़का आगे चलकर विश्व का प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ हरगोविंद खुराना के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
डॉ हरगोविंद खुराना की शिक्षा :
बचपन से ही डॉ खुराना तेजस्वी छात्र थे और अपनी कक्षा में अव्वल ही रहते थे, जिसकी वजह से खुराना जी को निरन्तर रूप से छात्रवृत्ति मिलती रही और जिससे उनकी आगे की पढ़ाई सुचारू रूप से निरन्तर चलती रही। डॉ हरगोविंद खुराना की प्रारम्भिक शिक्षा गांव में सम्पन्न हुई। उसके आगे की हाई स्कूल की पढ़ाई इन्होंने गांव से बाहर मुल्तान के डी. ए. वी हाई स्कूल से पूरी की। इसके दौरान डॉ हरगोविंद खुराना पर उनके गुरु श्री रतन लाल जी का काफी प्रभाव रहा। इसके बाद डॉ खुराना पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर चले गए, यहां से उन्होंने 1943 में बी. एस. सी आनर्स की पढ़ाई तथा 1945 में एम. एस. सी आनर्स की पढ़ाई पूरी कर डिग्री हासिल की। इस दौरान डॉ खुराना का मार्गदर्शक उनके शिक्षक महान सिंह द्वारा किया गया।
सन् 1945 तक डॉ खुराना भारत में ही रहे उसके बाद भारत सरकार द्वारा छात्रवृत्ति अर्जित कर हाईयर स्टडीज के लिए इंग्लैण्ड चले गए जहां सन् 1948 में डॉ खुराना ने लिवरपूल विश्वविद्यालय से प्रोफेसर रॉजर जे एस बियर की देखरेख में शोध कर पी.एच.डी की पढ़ाई पूरी की और डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। इसके पश्चात एक वर्ष के लिए डॉ खुराना स्विट्जरलैंड के फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अन्वेषण के लिए गए , जहां प्रोफेसर प्रेलाग अन्वेषण में उनके सहयोगी रहे, प्रोफेसर प्रेलाग का डॉ खुराना पर गहरा असर पड़ा।
डॉ हरगोविंद खुराना का करियर :
इंग्लैण्ड में उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद डॉ खुराना भारत आ गए परन्तु भारत में उन्हें अपने योग्य कोई कार्य नहीं मिला अतः वे पुनः 1949 में इंग्लैण्ड चले गए और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में लार्ड टाड के साथ काम करने लगे तथा 1950 से 1952 तक कैम्ब्रिज में काम किया। 1952 में डॉ खुराना को कनाडा की कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में बुलाया गया जहां वे जैव रसायन विभाग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए और इसी पद पर कार्यरत रहते हुए इन्होंने अपने आनुवांशिकता के गहन शोध को आगे बढ़ाया। कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में उनके द्वारा की गई आनुवंशिकता की खोज की चर्चा अन्तर्राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में होने लगी, जिसके लिए सन् 1960 में डॉ खुराना को ‘प्रोफेसर इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक सर्विस’ कनाडा में स्वर्णपदक और मर्क अवार्ड से सम्मानित किया गया।
इसके बाद सन् 1960 में डॉ खुराना अमेरिका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ एन्जाइम रिसर्च में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए, तथा करीब 5, 6 वर्ष बाद 1966 में अमेरिका के नागरिक बन गए। 1970 में डॉ हरगोविंद खुराना मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एम.आई.टी) में रसायन. और जीव विज्ञान के प्रोफेसर पद पर नियुक्त हो गए और 2007 तक इस इंस्टीट्यूट से जुड़े रहकर कई शोध कार्य पर ख्याति अर्जित की।
डॉ हरगोविंद खुराना द्वारा क्रत्रिम जीन्स अनुसंधान की खोज :
डॉ खुराना द्वारा की गई क्रत्रिम जीन्स अनुसंधान खोज से यह सिद्ध होता है कि किसी भी व्यक्ति, पशु , जीव जन्तु , पेड़ पौधों की जीन्स की संरचना से यह निश्चित होता है कि उसका रंग रूप, कद, स्वभाव व गुण कैसे होंगे। इस खोज में डॉ खुराना के अलावा डॉ रॉबर्ट और डॉ मार्शल निरेनबर्ग भी शामिल थे। इन तीनों वैज्ञानिकों ने डी.एन.ए की संरचना को स्पष्ट कर बताया कि डी.एन.ए प्रोटीन का संश्लेषण किस प्रकार करता है। इन वैज्ञानिकों ने खोज के दौरान पाया कि कई प्रकार के अम्लों से जीन्स का निर्माण हुआ है तथा जीन्स डी.एन.ए व आर.एन.ए के संयोग से बनते हैं। इसलिए बच्चों में उनके माता पिता के गुणों का होना लाजमी है। परन्तु यदि कोई माता पिता अपने बच्चों में अपने दोषों को आने से रोकना चाहता है और उसमें विशेष गुण उत्पन्न करना आज के वैज्ञानिक युग में सम्भव है।
डॉ हरगोविंद खुराना का व्यक्तिगत जीवन :
डॉ हरगोविंद खुराना जी का विवाह सन् 1952 में स्विस मूल की महिला एस्थर एलिजाबेथ सिल्बर से सम्पन्न हुआ। इनकी तीन संतानें हुई – सन् 1953 में पुत्री जूलिया एलिजाबेथ, सन् 1954 में पुत्री एमिली एन्न व सन् 1958 में पुत्र डेव रॉय। सन् 2001 में डॉ खुराना की पत्नी एस्थर एलिजाबेथ का निधन हो गया।
डॉ हरगोविंद खुराना की उपलब्धियां व सम्मान :
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डॉ खुराना को उनके शोध कार्यों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जिनमें कुछ इस प्रकार हैं।
- 1958 में कनाडा में मर्क मैडल मिला।
- 1960 में कैनेडियन पब्लिक सर्विस द्वारा गोल्ड मैडल मिला।
- 1967 में डैनी हैनमेन अर्वाड
- 1968 में लॉस्कर फेडरेशन अर्वाड
- 1968 में चिकित्सा विज्ञान में नोबेल पुरस्कार
- 1968 में लूसिया ग्रास हारी विट्ज अर्वाड
- 1969 में भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित
- 1971 में पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ द्वारा डी.एस.सी की उपाधि
डॉ हरगोविंद खुराना का निधन :
विज्ञान व चिकित्सा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान देने वाले महान वैज्ञानिक डॉ हरगोविंद खुराना 89 वर्ष की उम्र में अमेरिका के मैसाचुसिट्स में अपनी आखिरी सांस लेते हुए दुनिया को अलविदा कह गए। ऐसे महान वैज्ञानिक को हम सभी का शत् शत् नमन।
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